शाहजहांपुर इस समय बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है। गर्रा और खन्नौत नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं और उनका पानी अब गाँवों से निकलकर शहर के बीचोंबीच पहुँच चुका है। दिल्ली–लखनऊ नेशनल हाईवे पर पानी का जमाव और राजकीय मेडिकल कॉलेज परिसर का जलमग्न होना इस आपदा की गंभीर तस्वीर पेश करता है।
हाईवे बना जलमार्ग
शनिवार सुबह से ही बरेली मोड़ के पास दिल्ली–लखनऊ हाईवे पर पानी बहने लगा। पानी के बहाव से यातायात धीमा हो गया और कई जगह जाम की स्थिति बनी। भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाई गई है। प्रशासन ने पुलिस बल तैनात कर ट्रैफिक नियंत्रित करने की कोशिश की, मगर यात्रियों को घंटों फँसकर सफर तय करना पड़ा।
मेडिकल कॉलेज भी डूबा
सबसे चिंताजनक स्थिति राजकीय मेडिकल कॉलेज की रही, जहाँ भूतल पर बाढ़ का पानी भर गया। अस्पताल प्रशासन को मजबूर होकर करीब 100 मरीजों को ऊपरी मंजिलों पर शिफ्ट करना पड़ा। जिन मरीजों की हालत सामान्य थी, उन्हें दवाइयाँ देकर डिस्चार्ज कर दिया गया।
मशीनों और जरूरी उपकरणों को भी ऊपर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। एक्स-रे और इमरजेंसी वार्डों के बाहर अस्थायी दीवारें खड़ी कर पानी रोकने की कोशिश की गई।
मोहल्लों और कॉलोनियों में तबाही
सुभाष नगर, लोधीपुर, अब्दुलागंज समेत कई निचले इलाकों में पानी घुस गया है।
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घरों के आँगन और गलियों में घुटनों तक पानी जमा है।
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महिलाएँ और बच्चे छतों पर शरण ले रहे हैं।
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कई परिवार नाव और ट्रैक्टर से सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाए गए हैं।
पानी में डूबे घरों को देखकर लोगों की आँखों में आँसू छलक आते हैं, लेकिन साथ ही यह उम्मीद भी है कि हालात जल्द सुधरेंगे।
इंसानियत की मिसाल
संकट के बीच लोग एक-दूसरे का सहारा बने हुए हैं। कई युवाओं ने अपने ट्रैक्टर और नाव से लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया। मोहल्लों में महिलाएँ एक-दूसरे के परिवारों के लिए खाना बना रही हैं। मेडिकल स्टाफ ने घंटों लगातार ड्यूटी कर मरीजों की जान बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
प्रशासन अलर्ट पर
जिला प्रशासन ने बाढ़ राहत कंट्रोल रूम सक्रिय कर दिया है। SDRF, NDRF और PAC की टीमें प्रभावित इलाकों में तैनात हैं।
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नावों के जरिए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जा रहा है।
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दवाइयाँ और खाद्यान्न बाँटा जा रहा है।
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मेडिकल कॉलेज की स्थिति पर विशेष नजर रखी जा रही है।
आँसू, उम्मीद और जिम्मेदारी
शाहजहांपुर की बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक तैयारियों की परीक्षा भी है।
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आँसू हैं उन परिवारों की आँखों में जिन्होंने अपना घर पानी में डूबते देखा।
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उम्मीद है उन लोगों की, जो राहत टीमों और प्रशासन की कोशिशों पर भरोसा करके सुरक्षित स्थानों पर पहुँचे।
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जिम्मेदारी है प्रशासन और सरकार की, कि हर साल दोहराई जाने वाली इस त्रासदी का स्थायी समाधान तलाशा जाए।